बुजुर्गों को मिला नया अधिकार, संतानों को नहीं मिलेगा संपत्ति में हिस्सा अगर…. – Property Rules

By gaurav

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Property rules

Property Rules : भारतीय समाज में यह धारणा लंबे समय से चली आ रही है कि बेटा या बेटी को माता-पिता की संपत्ति में जन्म के साथ ही हक मिल जाता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने इस सोच को बदल दिया है। अदालत ने साफ कहा है कि केवल खून का रिश्ता होना अब संपत्ति पर अधिकार पाने के लिए काफी नहीं है।

अब जिम्मेदारी निभाना होगा जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई संतान अपने माता-पिता की सेवा नहीं करती, उनका सम्मान नहीं करती या उनका सहारा नहीं बनती, तो उसे माता-पिता की संपत्ति पर दावा करने का कोई हक नहीं होगा। यह फैसला उन बुजुर्गों के लिए राहत लेकर आया है जो अपनी ही संतान की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।

अब संपत्ति पर हक पाने के लिए बच्चों को केवल बेटा-बेटी होना ही नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से पालन करना होगा।

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माता-पिता को मिली कानूनी ताकत

अक्सर देखा गया है कि माता-पिता अपने जीवन भर की कमाई बच्चों को सौंप देते हैं, यह उम्मीद करते हुए कि वे बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे। लेकिन कई बार बच्चे संपत्ति मिलते ही बदल जाते हैं और माता-पिता को नजरअंदाज करने लगते हैं।

अब कोर्ट के फैसले के बाद, अगर माता-पिता को यह साबित हो जाए कि उनकी देखभाल नहीं की जा रही, तो वे पहले से ट्रांसफर की गई संपत्ति को भी कानूनी तौर पर वापस ले सकते हैं।

पुराने नियमों को तोड़ा गया

पहले यह माना जाता था कि एक बार संपत्ति ट्रांसफर हो गई तो उसे वापस पाना लगभग असंभव है। लेकिन इस नए फैसले ने यह रास्ता खोल दिया है कि अगर संतान अपने कर्तव्यों में विफल रहती है, तो संपत्ति वापस ली जा सकती है।

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यह फैसला उन माता-पिता के लिए बड़ा सहारा है जिन्होंने भावनात्मक रूप से बच्चों के नाम संपत्ति कर दी थी और बाद में पछताए।

बच्चों के लिए सख्त चेतावनी

यह फैसला बच्चों के लिए एक सख्त संदेश है – अगर आप माता-पिता की सेवा नहीं करते, तो आप उनकी संपत्ति के अधिकारी नहीं कहला सकते। संपत्ति पर हक पाने के लिए सिर्फ जन्म लेना काफी नहीं है, बल्कि व्यवहार से यह साबित करना होगा कि आप उस हक के योग्य हैं।

बुजुर्गों के लिए व्यावहारिक सुझाव

  • संपत्ति ट्रांसफर करने से पहले बच्चों के व्यवहार को अच्छे से परखें।
  • दानपत्र या पावर ऑफ अटॉर्नी में अपनी सुरक्षा से जुड़ी शर्तें जरूर शामिल करें।
  • अगर बच्चे का व्यवहार बदले तो चुप न बैठें, कानूनी सलाह लें।
  • अपने अधिकारों को लेकर सतर्क रहें और न्याय की मदद लेने से न डरें।

समाज में बदलाव की उम्मीद

यह फैसला सिर्फ कानून नहीं, समाज के लिए भी एक सीख है। अब युवाओं को समझना होगा कि माता-पिता की सेवा केवल नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कानूनी भी है। इससे पारिवारिक संबंधों में सम्मान और जिम्मेदारी की भावना बढ़ेगी।

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सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बुजुर्ग माता-पिता के हक को मजबूत करता है और लापरवाह संतान के लिए सख्त चेतावनी है। अब संपत्ति पाने के लिए सिर्फ रिश्ता नहीं, सेवा और सम्मान भी जरूरी है।

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